Powered By Blogger

Thursday, May 27, 2010

माया के शाही अंदाज़

माया की माया साल दर साल बढ़ती जा रही है... ख़ुद को दलित की बेटी कहने वाली बसपा नेता की संपत्ति में 3 साल के अंदर 35 करोड़ रुपए का इज़ाफ़ा हुआ है... इसका ख़ुलासा मायावती ने विधान परिषद चुनाव के लिए नामांकन के दौरान सौंपे गए शपथ-पत्र में किया... माया के पास है 88 करोड़ रुपए की संपत्ति... और तो और हैरान करने वाली बात ये है कि बेशुमार दौलत की मालकिन के पास पहले से न कोई वाहन था और न ही खेती की ज़मीन... मायावती के पास उनके पुश्तैनी गांव बादलपुर में न कोई मकान है, न कोई बंगला और न एक इंच ज़मीन है...पहली बार 1995 मुख्यमंत्री बनने के बाद से वो कभी भी वहां नहीं गई है...लेकिन माया ने 2007 में MLC के उपचुनाव में नामांकन के साथ भरे गए शपथ-पत्र में 52 करोड़ रुपए की संपत्ति होने की जानकारी दी... शपथ-पत्र में मायावती ने कहा है कि उनके पास 75.47 करोड़ रुपए की व्यावसायिक और आवासीय संपत्ति है... बकौल माया दिल्ली के महंगे नेहरू रोड इलाके में 54 करोड़ रुपए की मंहगी ज़मीन है...बहरहाल पैसा कब कहा से और कैसे आया और उससे माया के शौक कैसे बदले ये सोचने वाली बात है...माया ज़ेवरों की भी हैं ख़ास शौकीन है... उनके पास एक किलो सोना और हीरे जवाहरात जड़ित गहने हैं, जिनकी क़ीमत 88 लाख रुपए है... माया को ‘शहंशाहों’ जैसा शौक़ हैं... उनके पास 4 लाख का एक चांदी का डिनर सेट है...जिसका वजन 18 किलो है... इसके अलावा पेंटिंग और म्युरल्स भी हैं...जिसकी क़ीमत 15 लाख है... बैंकों और विभिन्न वित्तीय संस्थाओं में उन्होंने 11.39 करोड़ रुपए जमाकर रखा है...अब सवाल ये है की बादलपुर की विशाल कोठी किसकी है... माया ने ख़ुद अपनी आधा दर्जन से ज़्यादा प्रतिमाएं लगवाई हैं अब उनके एक समर्थक ने महोबा जिले में ‘मायावती का मन्दिर’ बनवाने की अनुमति मांगी है... ख़ास बात है कि मन्दिर में मायावती की प्रतिमा पर फूलों की जगह नोट चढ़ाए जाएगें... बसपा प्रमुख को पिछले 15 मार्च को हुई रैली में हज़ार-हज़ार रूपए के नोटों की 16 फ़ुट लंबी माला पहनाई गई थी... इस माला में 21 लाख के नोट थे...

Monday, May 17, 2010

बेतुके…… के बेतुके फ़तवे

इन बेतुके फ़तवों पर हंसी भी आती है और अफ़सोस भी होता है कि क्या हो गया है, इन उलेमाओं को... जो अपनी क़ाबलियत का दम्भ भरते हैं... और शरीयत की बिसात पर फ़तवों की चाल चल क़ौम को बरग़ला रहे हैं... लेकिन वो भूल गए है कि आज हर इंसान अपने हक़ के बारे में पूरी जानकारी रखना चाहता है... और जो नहीं भी रखता तो रही सही कसर मीडिया पूरी कर देता है...फ़तवे देने से पहले इन उलेमाओं को शरीअत के साथ पैग़म्बर मोहम्मद (स.अ) की ज़िन्दगी पर भी ग़ौरफ़रमा लेना चाहिए... लेकिन कोई बात नहीं जिन चीज़ों पर ये आलिम ध्यान न दें उन चीज़ों पर हम जैसे लोगों का ध्यान अक्सर चला जाता हैं...तो इन उलेमाओं को ध्यान दिला दिया जाए की पैग़म्बर मोहम्मद की पहली पत्नी ख़तीज़ा भी तिजारत करती थीं (बिजनेस) वो अपने ज़माने की बहुत बड़ी बिजनेस वुमेन थी... अब सवाल ये खड़ा होता है.. की मुस्लिम औरते नौकरियां ही कितनी करती हैं... जो उनपर फ़तवे और धिक्कार का फ़रमान लागू किया जाए... जो करती भी हैं उनको फ़तवों की बेड़िया पहना कर चार दिवारी में क़ैद करने की कोशिश की जा रही है...मुस्लिम समाज वैसे भी पिछड़ा हुआ हैं...और जो महिलाए आगे बढ़ना भी चाहती है तो उनको पीछे खींचा जा रहा है...और सबसे बड़ा सवाल ये है... की जब इस्लाम ने जब औरतों पर इस तरह की कोई पाबंदी नहीं लगाई है... तो ये उलेमा कौन होते है इन पर अपनी राय क़ायम करने वाले...ग़ौरतलब है कि नौकरियों में मुसलमानों की मौजूदगी पहले ही बेहद कम है… नौकरी में उनका हिस्सा 5 फ़ीसदी से भी कम… मुस्लिम औरतों के लिए नौकरी के मौक़े भी बहुत कम हैं...
सच्चर कमेटी की रिपोर्ट के मुस्लमनों के लिए कई नेताओं ने आरक्षण की आवाज़ बुलंद की... ऐसे में दारुल उलूम देवबंद के फ़तवे जारी हो रहे हैं... क़ौम की तरक्की से जुड़े इस मसले पर मुस्लिमों के सियासी और मज़हबी नेता भी दायरों से बंधे हैं... देवबंद के ताज़ा फ़तवे ने सीधा सवाल यह खड़ा कर दिया है... कि मौक़ा मिलने पर औरतें नौकरी करें या नहीं... वो मज़हब की रवायतों को तरजीह दें या अपनी तालीम और तरक्क़ी को...
मुस्लिम समुदाय में सिर्फ 25.2 फ़ीसदी औरतें ही कामकाजी हैं... नौकरियों में मुस्लमान की भागीदारी कुछ इस तरह है..... आईएएस 03 फीसदी... आईएफएस 1.8 फीसदी... आईपीएस 04 फीसदी... रेलवे 4.5 फीसदी... अदालतें 7.8 फीसदी... पुलिस 06 फीसदी... स्वास्थ्य 4.4 फीसदी... शिक्षा 6.5 फीसदी.... 14 साल की उम्र के 25 फीसदी मुस्लिम बच्चे स्कूलों से महरूम हैं... ज़ाहिर है की बेहतर नौकरियां दूर की बात हैं... इस सूरते-हाल में ऐसे फ़तवों की क्या अहमियत है...नौकरियों में मुस्लिमों की बेहद कम तादाद का अफ़सोस मज़हबी नेताओं को है... लेकिन औरतों के सवाल पर पुरानी रवायतें उन पर हावी हैं...मुस्लिम महिलाओं के लिए शरीयत के हिसाब से सरकारी या प्राइवेट क्षेत्र में काम करना ग़ैरक़ानूनी है...और किसी परिवार के लिए महिला की कमाई मंज़ूर करना भी हराम है... ये फ़तवा जारी किया गया है...और ऐसे कितने फ़तवे जारी किए जा चुके है... लेकिन क्या कभी इन बेतुके फ़तवों को कोई अमल में लाया... नहीं... लेकिन फ़िर भी ये उलेमा फ़तवे बाज़ी से बाज़ नहीं आ रहे हैं...

Friday, May 14, 2010

बड़े बे-आबरू होके........

ये तो होना ही था... जी हां हम बात कर रहे हैं अपने चैतन्यों की... जो टीम इंडिया की इज़्ज़त सरे बाज़ार लुटा कर आए हैं... और इसका खामियाज़ा महेंद्र सिंह धोनी को भुगतना पड़ सकता है... अब जल्द ही धोनी से भारतीय वनडे और टी-20 टीम की कप्तानी छिनी जा सकती है... धोनी से नाराज़ BCCI  टी-20 और वनडे में कप्तानी की लगाम सहवाग के हाथ में दे सकती है...
2004 में भारतीय टीम में शामिल होने वाले महेंद्र सिंह धोनी 6 साल से भारतीय क्रिकेट टीम में अपनी अहम भूमीका निभा रहे हैं... कैप्टन कूल के ख़िताब से नवाज़े गए धोनी ने 2007 में भारत को टी-20 वर्ल्ड कप का ख़िताब दिलाया... लेकिन वक्त के शिकंजे ने धोनी को सवालों के घेरे में जकड़ लिया है... ऐसे में धोनी की कप्तानी पर सवाल उठना लाज़मी है... टी-20 वर्ल्ड कप में ख़राब प्रदर्शन के बाद BCCI  के पास धोनी को कप्तानी से हटाने की ठोस वजह भी है... टीम इंडिया की हार का पोस्टमार्टम शुरू हो गया है... टी-20 वर्ल्डकप में भारतीय टीम एक भी सुपर 8 मुकाबला नहीं जीत पाई है...
टीम के कोच गैरी कर्स्टन का कहना है कि हार की वजह खिलाड़ियों का ग़लत चयन है... टीम में 3 खिलाड़ी ऐसे थे जो टी-20 समेंत किसी भी फॉरमेट के लिए फिट नहीं थे...
वहीं टी-20 से बाहर होने की वजह से प्रशंसकों के निशाने पर आई भारतीय टीम के फ़ेवर ख़ुद भगवान यनी सचिन तेंदुलकर उतर आए... सचिन ने मीडिया से टीम का बचाव करते हुए कहा कि टीम ने पूरी कोशिश की लेकिन ऐसा हो जाता है... कि कोशिशों के बावजूद हम जीत दर्ज नहीं कर पाते... बेशक IPL का ग्लैमर हमारे क्रिकेटरों के लिए नुकसान देह साबित हुआ... ये साफ़ नज़र आ रहा है... टी-20 वर्ल्डकप में टीम के प्रदर्शन में... IPL में लेट नाइट पार्टीज़ में खिलाड़ियों की मौजूदगी से परफारमेंस पर ख़ास असर पड़ा है...जबकि ऐसी पार्टियों में क्रिकेटरों की मौजूदगी ज़रूरी नहीं है... खिलाड़ी चाहे तो पार्टी अटेंड नहीं करे या नही...
टीम इंडिया की हार से दुखी प्रशंसक ने सेंट लूसिया में गेंदबाज आशीष नेहरा के साथ मारपीट करते हुए उनकी टी शर्ट फाड़ दी... और बाद में युवराज सिंह ने मामले पर लीपा-पोती करते हुए ट्विटर पर सफ़ाई दी कि नेहरा के साथ किसी भी तरह की मारपीट नहीं हुई...
टीम इंडिया 5 मैच में 2 मैच जीती और सुपर 8 के 3 मैच हार गई... शेर की तरह दहाड़ने वाली टीम इंडिया कैरिबियाई पिचों पर भीगी बिल्ली बन गई और इनकी हवा निकल गई... इसकी वजह बना धोनी का ओवर कॉन्फ़िडेंस, आईपीएल में फ़ॉरमेट चुनी गई टीम, युवराज, गौतम गंभीर, युसूफ पठान का मौक़े पर धोखा देना... हरभजन, ज़हीर और नेहरा का थर्ड क्लॉस प्रदर्शन, IPL की पार्टियों से हुई थकान...लेट नाइट पार्टियों की वजह से टीम को हार का मुंह देखना पड़ा...जहां क्रिकेटर साल में 9 महिने होने वाले मैचों के अलावा घंटों मैदान में पसीना बहाते... वहीं IPL की टीम 14 से 16 पार्टियों में शामिल होती है... सवाल ये है कि क्यों ये पार्टियां सालभर की मेहनत पर भारी पड़ी... क्रिकेटरों की नाइट पर्टियों में फैशन परेड, सेक्सी लेडी विथ डांस फ़्लोर पर खिलाड़ियों का थिरकना... जमकर शराब पीना और टल्ली होना, भारी भोजन सुबह तक मस्ती करने का नतीजा अगले दिन साफ़ नज़र आता है...जिसमें खिलाड़ियों का प्रैक्टिक्स से दूर भागना, और दूसरे शहर में खेलने के लिए थकन भरी जर्नी... वजन बढ़ना, फिटनेस घटना... तो बात वही घूम फिर कर आती है कि ये तो होना ही था....

Saturday, May 8, 2010

मां तुझे सलाम 'special mother day'

थकन आए ना जिसे... ना हो चेहरे पे शिक़न...
अपने बच्चों के लिए करती रही... लाखों जतन...

कोई भूखा था...कोई नंगा तो कोई बे-घर...
मौत के बाद भी... मयस्सर था ना कफ़न


बे-सहारों के लिए छोड़ दिया... जिसने अपना वतन...
भारत देश करता है... उस मां को नमन...


Happy mothers day
To all mom of the world


Marziya jafar
Asst .producer (news desk)
Lemon tv & C1/news
National news channel

गुनाह की सज़ा मौज

 ये है तिहाड़ में ऐशो आराम से ज़िन्दगी गुजारने वाले हाई प्रोफ़ाईल क़ैदी
मोहम्मद अफ़्ज़ल गुरू
संसद पर हमले का दोषी
18 दिसंबर 2002 को फांसी की सज़ा सुनाई गई
सुप्रीम कोर्ट में रद्द होने के बाद
राष्ट्रपति के पास दया याचिका डाली
जवाब आना बाक़ी
देवेंद्र सिंह भुल्लर
ऑल इंडिया एंटी टेरेरिस्ट फ़्रंट के चैयरमैन मनिंदर जीत सिंह बिट्टा पर जान लेवा हमला करने का दोषी
25 अगस्त 2001 को फांसी की सज़ा सुनाई गई
राष्ट्रपति के पास दया याचिका डाली
जवाब आना बाक़ी
अतबीर
हत्या के मामले में दोषी अतबीर को 10 सितंबर 2002 को फांसी की सज़ा सुनाई गई
हाईकोर्ट ने 18 जनवरी 2006 को ये सज़ा बरक़रार रखी
सुप्रीम कोर्ट में अपील पर फ़ैसला आना बाक़ी
मोहम्मद हुसैन
मोहम्मद हुसैन उर्फ़ जुल्फ़िक़ार हत्या के मामले का दोषी
3 नवंबर 2004 को फांसी की सज़ा सुनाई गई
जिसे हाईकोर्ट ने 4 अगस्त 2006 को बरक़रार रखा
सुप्रीम कोर्ट में अपील लंबित
सुशील शर्मा
कांग्रेस के नेता रहे सुशील शर्मा नैना सहानी हत्याकांड या तंदूरकांड में दोषी
7 नवंबर 2003 को फांसी की सज़ा सुनाई गई
सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर
फ़ैसला आना बाक़ी
मोहम्मद आरिफ़
मोहम्मद आरिफ़ उफ़्र आफ़ताब लाल क़िला गोलीकांड का दोषी
31 अक्टूबर 2005 को फांसी की सज़ा सुनाई गई
सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर
फ़ैसला आना बाक़ी
संतोष सिंह
प्रियदर्शिनी मट्टू हत्याकांड के दोषी
3 दिसंबर 1999 को फांसी की सज़ा सुनाई गई
सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर
फ़ैसला आना बाक़ी
राजेश कुमार
हत्या के मामले में दोषी
24 मार्च 2007 को फांसी की सज़ा सुनाई गई
सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर
फ़ैसला आना बाक़ी
मो. आमिर अजमल कसाब
मुंमई की विशेष अदालत ने दी सज़ा-ए-मौत
तहलयानी ने सुनाया फांसी का फ़रमान
सरकारी वकील उज्जवल निकम
86 मामलों का दोषी कसाब
देश में युद्ध छेड़ने की साजिश
ये फेहरिस्त है उन कैदियों की है जिसे सज़ा-ए-मौत का फरमान सुनाया गया है लेकिन अभी तक इन्हे सज़ा दी नहीं गई है...बल्कि इस लिस्ट में 26/11 के दोषी कसाब का भी नाम जुड़ गया हैं...इन सज़ा यफ़्ता कैदियों का ठाटबाट किसी राजा महाराजा से कम नही है....इन कैदियों का डे शेड्यूल कुछ इस तरह से तैयार किया गया हैं जैसे किसी सेलीब्रेटी का हो...जिसमें ब्रेकफ़ास्ट, लन्च, ब्रंच और डिनर शामिल है....खाने पीने के अलावा इन कैदियों की फिटनेस का भी भरपूर ख्याल रखा जाता है...इन कैदियों की सेहत को सही रखने के लिए इन्हे कई तरह की एक्सर्साईज़ भी कराई जाती है... जिसमें योगा, मॉर्निंग वॉक, और इवनिंग वॉक जैसी फ़िटनेस एक्टिविटी भी शामिल हैं...और तो और आपको ये जान कर हैरत हो सकती है कि इन कैदियों की फ़रमाईशे भी ख़ूब होती है...किसी को चिकन बिरयानी चाहिए तो किसी को तंदूरी चिकन, किसी को देश दुनिया की ख़बर जानने के लिए हिन्दी अंग्रेज़ी और उर्दू के न्यूज़ पेपर की भी ज़रूरत पड़ती है, जो जेल मैनेजमेंट बड़े शौक़ से पूरा करता है, तो ऐसी सज़ा से क्या फ़ाएदा....देश में लोग ग़रीबी भुखमरी महामारी से पल पल जुझ रहे है...देश में ऐसे भी लोग है जिसने अपने जन्म के वक्त से ही सर पर छत नही देखी...दिन भर मेहनत मशक्कत करने के बाद रात को थक कर खुले आसमान के निचे सो जाते है...लेकिन हमारी सरकार इन ग़रिबों की परेशानी को नज़र अंदाज़ कर कैदियों की खातिरदारी में लगी है... तभी तो अफ़्ज़ल गुरू, अजमल कसाब, देवेंद्र सिंह, अतबीर, मोहम्मद हुसैन, सुशील शर्मा, मोहम्मद आरिफ़, संतोष सिंह, राजेश कुमार जैसे लोग सरकारी पैसों पर ऐश काट रहे है...और राजनैतिक पार्टियां एलेक्शन के वक्त इन कैदियों की सज़ा के मुद्दे को भुनाने में लगी रहती है...की कम से कम इसी बहाने वोट बैक तो सुरक्षित रहेगा...

हमारे देश में सज़ा-ए-मौत की लिस्ट में 308 मामले विचाराधीन हैं...लेकिन अब तक ये फ़ासी के तख़्ते तक नही पहुंचे...गौरतलब है कि सज़ा याफ़्ता कादियों की लिस्ट तो बहुत लम्बी है लेकिन पूरे देश में अब कोई भी जल्लाद नही बचा है जो इन्हे फांसी पर लटका सके...धन्नजय चटर्जी को फांसी देने वाला देश का आखिरी जल्लाद नाटा मलिक था...लेकिन कुछ महिने पहले उसकी भी मौत हो गई... ऐसे में सज़ा-ए-मौत के कैदियों की मौज क्यों ना हो.....

Monday, May 3, 2010

कसाब का हिसाब......ताज़ीराते हिन्द दफ़ा..... के तहत 26/11 के आरोपी कसाब को.....

पूरा देश गुनाहगार कसाब को मिली सज़ा सुनना चाहता है... इस फैसले का लोगों को बेसब्री से इंतजार है... 26/11/08 मुंबई हमले का आरोपी कसाब पर फैसला आ गया है...मोहम्मद अजमल कसाब को पूरे 86 मामलों में दोषी पाया गया है जिसमें भारत में युद्ध छेड़ने का भी आरोप है लेकिन उसकी सज़ा अभी मुकर्रर नही हुई है... क्या आपको लगता है कि कसाब के जुर्म के लिए भारतीय क़ानून में कोई ऐसी सज़ा है जो क़साब को दी जा सके... लगातार तीन दिन होटल ताज, नरीमन हाउस में कोहराम मचाने वाला और ना जाने कितने बेगुनाहों को मारने वाला ये आतंकी न तो सज़ा-ए-मौत के क़ाबिल है और ना ही उम्र कैद के...हमारे देश में संगीन जुर्म करने वालों को यही सज़ा दी है...लेकिन कसाब तो ख़ुद एक फ़िदाईन था और मरने का डर उसे उस वक्त भी नही था और शायद आज भी... कसाब के लिए फांसी या उम्र कैद बहुत मामूली सी सज़ा है... हमारे देश में पुलिस की थर्ड डिग्री भी विदेशों की सॉफ़्ट डिग्री में आती है... तो कैसे कसाब को इतनी मामूली सज़ा दी जा सकती है...
भारत हमेशा से भावनाओं में घिरा रहता है...इसीलिए एक बार किसी दोषी को सज़ा देने में हाथ तो कांपना लाज़मी है लेकिन कसाब जैसे आतंकी के बारे में ऐसा सोचना भी गुनाह है... और यहीं पर आकर देश के क़ानून पर सवाल खड़ा हो जाता है... जिससे कभी-कभी शर्मिदा भी होना पड़ता है... जहां सिर्फ़ तारिख, और सुनवाई पर ही इतना वक्त गुज़र जाता है कि इंसान तो मर जाता है लेकिन वो फाईलों में ज़िन्दा रहता है... तो कुछ ऐसा ही आतंकियों के साथ भी हो रहा है...बहरहाल...  कसाब को अगर फ़ासी की सज़ा सुनाई गई तो चंद मिनटों में उसकी सारी परेशानिया खत्म हो जाएंगी... और अगर उम्र कैद की सज़ा दी गई तो उसको सरकार राजशाही ठाट से नवाज़ेगी... उसकी सुरक्षा, सेहत और ख्वाहिशों का भरपूर ख़्याल रखा जाएगा... ये कोई मज़ाक में कही गई बाते नहीं है...क्योंकि एक आतंकी है जिसे फ़ांसी की सज़ा मिलने के बावजूद उसे अमल में नहीं लाया जा रहा है...जी हां हम अफ़ज़ल गुरू की बात कर रहे है जिसने 13/12/01 में संविधान के मंदिर पर हमाल कर देश की सुरक्षा व्यवस्था को चोट पहुंचाई... देश में उस वक्त एनडीए सरकार थी...और विपक्ष में यूपीए...इस मामले पर दोनों पक्ष एक दूसरे की सिर्फ़ टांग खिचते नज़र आते है...लेकिन गुरू को आज तक सज़ा नही दी गई...हांलाकि ऐसे मुद्दों पर वोट बैंक की राजनीति ख़ूब रंग लाई और एनडीए का तख़्ता पलट केंद्र में यूपीए सरकार का कब्ज़ा हो गया....लेकिन अजमल को कोई फांसी के तख़्ते तक नही पहुंचा सका... कसाब के फैसले पर भी यही डर है की कहीं इसे भी अफ़ज़ल गुरू की तरह सज़ा ना सुना दी जाए...और फिर इसके आका इसे छुड़ाने के लिए कभी किसी को बंदी बनाकर अपने साथी को वापस करने की मांग करें... या फिर अफ़ज़ल की मांग पर कांधार प्लेन हाईजेक जैसी घटनाओं को अंजाम दे... और इसका खामियाज़ा बेचारी जनता को भुगतना पड़ेगा...और शायद कसाब की फ़िल्म का ट्रेलर उसकी सुनवाई से ठिक दो दिन पहले हम  देख चुके हैं... अमेरिका के हवाले से ये ख़बर मिली की दिल्ली आतंकीयों के निशाने पर हैं... ख़बर सुनते ही पूरी दिल्ली को छावनी में तब्दीवल कर दिया गया...ये अफ़वाह शायद ध्यान भटकाने के लिए फैलाई गई हो...लेकिन एक ही बात अक्सर देश वासियों को कचोटती रहती है की आखिर कब तक ऐसे ही तिल-तिल मरना पड़ेगा...सवाल ये है कि क्या हमारे देश का क़ानून इतना लाचार है... कि देश द्रोहियों को सज़ा देने में वक्त ज़ाया करने के बावजूद भी कोई सख्त सज़ा नही सुना सकता...अगर नहीं तो ऐसे फैसले जनता के हाथ में दे देने चाहिए...

Sunday, May 2, 2010

सूचना के तालाब की बड़ी मछली शिकंजे में

प्यार और जंग में सब जाएज़ है ये कहावत तो आपने सुनी होगी...लेकिन विदेश मंत्रालय में भारतीय विदेश सेवा ग्रेड बी की 53 वर्षीय अधिकारी माधुरी ने प्यार और पैसों के लिए अपनी मां की ही इज़्जत को दांव पर लगा दिया...वो देश से जुड़ी सूचनाए आईएसआई एजेंट मेंजर राणा को देती थी...ये सूचनाए देश के अंदुरूनी मामलो से जुड़ी थी... इसमें 26/11 की जांच से जुड़ी जानकारी भी लीक की गई थीं...ये बात लोकसभा में विदेश राज्यमंत्री परनीत कौर ने कही... बहरहाल देश का द्रोही चेहरा अगर देखना है तो माधुरी गुप्ता के मासूम चेहरे को देखिए...शक्ल-ओ-सूरत से भारतीय संस्कृती की चादर में लिपटी एक भारतीय नारी ...लेकिन इस चेहरे के पीछे छिपा था ख़तरनाक मंसूबा जिसकी भनक तक किसी को नहीं थी ...माधूरी की इस करतूत ने पूरे देश को शर्म सार कर दिया लेकिन इस देशद्रोही के उपर कोई असर नही है...इसका कहना है की ये सब मैने पैसे और प्यार के लिए किया...
तकरीबन 6 साल पहले इस्लाम धर्म कबूल कर चुकी माधूरी ने शिया समुदाए को अपनाया था... लेकिन अपने इस नए मजहब का एलान करने से डरती थीं... उनके परिवार का रिश्ता लखनउ के मुस्लिम परिवार आशिक हुसैन जाफरी से था...माधुरी ने अपनी ज़िन्दगी के शुरूआती दिन जाफरी परिवार के साथ गुजारे... जहां उन्हें इस्लामी रीति रिवाज इतने पसंद आने लगे कि उससे उन्हें लगाव होने लगा... माधुरी को रमजान के महीने में ऐसी अंगूठी, चूडियां पहने देखा गया जो शिया मुस्लिम पहनते हैं... माधुरी ने ये भी कहा मैं रोजा रखती हूं और इस्लाम की बहुत इज़्ज़त करती हुं... फर्राटेदार उर्दू बोलने वाली माधुरी दोस्ती करने में भी माहिर है... नए ड्रेस, हेयर स्टाइल और पाकिस्तानी उर्दू प्रेस के बारे में वह बढ़-चढ़कर बातें करती है...उसने 2007 में दिल्ली में उर्दू सीखी थी... माधुरी के तार राणा नाम के एक शख्स से जुड़े थे...उसने राणा को कई अहम जानकारियां बेचीं...ये जानकारियां देश के अंदरूनी मामले से जुड़ी थी...
80 के दशक में विदेश मंत्रालय में बतौर जूनियर क्लर्क नियुक्त हुई माधुरी मलेशिया, बगदाद और कोसोवो के भारतीय दूतावासों में बतौर अनुवादक पद पर काम किया... मलेशिया में ही वो पाकिस्तानी जासूसों के संपर्क में आई...उसने कुछ समय दिल्ली विदेश मंत्रालय में भी काम किया... 2006-2007 में दिल्ली में विदेश नीति के थिंकटैंक इंडियन काउंसिल ऑफ वर्ल्ड अफेयर्स में बतौर सहायक निदेशक काम किया...उर्दू की जानकारी होने की वजह से इस्लामाबाद में पोस्टिंग मिली... विदेश मंत्रालय में किसी ‘गॉडफादर‘ ने इसे अंजाम दिया...
पाकिस्तानी अखबारों और पत्रिकाओं से भारत की खबरें और लेखों का उर्दू से अंग्रेजी में अनुवाद करती थीं...पाकिस्तानी पत्रकारों से संबध बनाकर भारत के हित की खबरें छपवाना...भारतीय अधिकारियों का मानना है कि माधुरी के पास सामरिक, राजनीतिक या रणनीतिक महत्व की सूचनाएं नहीं होतीं... इसलिए खतरा बड़ा नहीं...
माधुरी अपने पाकिस्तानी सूत्रों से इस्लामाबाद के जिन्ना मार्केट के कैफे इफ्फी में मिलती थी...उसके चार सूत्र थे जिनसे उसे राणा नाम के पाकिस्तानी पत्रकार ने मिलवाया था...
माधुरी ने जासूसी क्यों की ये अभी साफ नहीं हो पाया है...लेकिन इसकी वजह या तो पैसा या फिर प्यार काम से न खुशी...
माधुरी पर शक तब हुआ जब उसने भारतीय सेना के अभ्यास के बारे में बार-बार पूछा तो रक्षा अताशे के कान खड़े हो गए... उच्चयोग के अफसरों की विदेश यात्राओं के बारे में जानकारी मांगती रहती थी...फरवरी में भारत-पाक विदेश सचिव स्तरीय बातचीत पर सवाल पूछे...पाक में बेखौफ घूमती....इस्लामाबाद के पॉश इलाके में उच्चयोग परिसर से अलग घर में रहने लगी...
माधुरी ने अपने मुल्क़ में भी थे भेदिए पाल रखे थे...वो जम्मू-कश्मीर के दंपती से अक्सर मुलाक़ात करती थी...इन दंपती में से महिला कई बार पाकिस्तान भी जा चुकी थी..

Putale me jaan phoonk ke

पुतले में जान फूंक के सोचा था ख़ुदा ने
दुनिया की सबसे हंसी चीज़ बन गई।

उतरा ज़मीं पे जब ये, मुजस्समा-ए-जानदार
जहां की हर शै डर के सहम गई।

दुनिया के तौर-ओ-तरीक़ों को सीखकर
इन इंसानों की जान में रूह उतर गई

देकर दिमाग़ नाम दिया था इंसान का
इन इंसानों के दिमाग़ में कुराफ़ात भर गई।

बढ़ते क़दम आगे सिखाते गए पैतरे
दुनिया की पश-ओ-पेश में पड़ इनकी शान बढ़ गई।

जब देखा ख़ुदा ने इन्हें तो हाल यूं हुआ
रूहवरों में जानवरों से फ़ितरत उतर गई।

मिर्ज़ा मरज़िया जाफ़र बेग