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Thursday, November 11, 2010

कहां....कहां.... बसने लगे भगवान


आस्था और विश्वास का कोई मोल नहीं होता... कहीं भी और किसी भी रूप में भगवान के दर्शन किए जा सकते हैं... ब-र्शत ऊपर वाले में विश्वास और आस्था अटूट हो... लेकिन क्या कभी सोचा है कि भगवान को हज़ारों रूप में बाट चुके इंसान कितनी देर उन्हें दिल में बसाते है... बड़ी शान से अपने घर में स्थापित करते हैं... और विध्वत पूजा अर्चना के बाद उनका विर्जन कर देते है... जितनी शान के साथ भगवान की मूर्तियां घर में लाई जातीं हैं... उतनी ही शान के साथ उनकी भव्य विदाई भी कि जाती है... लेकिन विर्सजन के बाद देवी-देवता की इन प्रतिमाओं के साथ क्या होता है... क्या किसी ने कभी इस बारे में सोचा है, कि जिन्हें घर में शान से लाए, आदर सत्कार दिया ... वही प्रतिमाएं विसर्जन के बाद लावारिस नज़र आती है... जिन्हे हाथों से कभी पूजा उसे ही बाद में क़दमों तले रौंद दिया... उस वक्ता सारा एहसास कहा चला जाता है... जब देवी देवताओं के पोस्टर उनकी मूर्तियां नदी नालों तलाब के इर्द-गिर्द नज़र आते है... बात यहीं ख़त्म नहीं हो जाती... अफ़सोस तो उस वक्त होता है जब उन पवित्र चीज़ो से वहीं इंसान किनारा कसते नज़र आते है जो दिनों रात उनकी पूजा अर्चना करते है... कहने का मतलब ये नहीं की भगवान की बेज़्ज़ती की जा रही हैं...


लेकिन विर्जन के बाद की लापरवाही का नतिजा आप के सामने है... कि किस तरह से कण-कण में बसने वाली शक्ती को एक आकार में ढ़ाल कर उसके साथ कैसा बर्ताव किया जाता है... सवाल ये भी उठता है कि आख़िर पूजा के बाद विर्जन की रस्म कैसे और कहा जा कर अदा कि जाए... भई इंसान तो नदी पर ही जाएगा... और वैसे भी मिट्टी की चीज़ मिट्टी में ही समा जाती है... य़ा उसे साफ़ सुरक्षित और पवित्र पानी में बहाया जाता है... लेकिन बहाने के बाद का नज़ारा आपके सामने है... इससे निपटने के लिए सबको एक जुट होकर काम करना पड़ेगा कि जहां की चीज़ हो उसे वहां भली भांति पहुंचा दिया जाए... ना कि आधे-अधूरे रास्तों पर छोड़कर उसे लोगों के क़दमों में रौदने के लिए छोड़ दिया जाए... क्योंकि हम अपनी आस्था और विश्वास के बल बूते ही उस शक्ति को एक आकार देते है... उसकी पूजा करते है... तो फ़िर मिट्टी से बनाए एक पवित्र आकार को कदमों की धूल कैसे बना सकते है...   

मरज़िया जाफ़र 

2 comments:

  1. very nice blog.....
    ye un logon k liye sharm ki baat hai jo dharm ke naam par ek dusron ko marne katne k liye taiyar ho jaten hain..par ek baar bhi khud k daaman me jhak kr nahi dekhten...jo ye samjhten hain ki visarjan ke baad sari jimmedariyon se chhutkaara mil gaya....

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