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Monday, December 6, 2010

घाटी में परदेसी परिंदे

चाहे लगा लो जितने पहरे... कुछ रिश्ते होते है इंसानियत से भी गहरे... सरहद पार से लम्बी उड़ान भरकर आए ये बे-ज़ुबान परदेसी परिंदे शायद अपनी मीठी सी चहचहाहट के ज़रिये प्यार और अमन का पैग़ाम लेकर आए है... की दुनिया की कोई भी शै इन पर बंदिश नहीं लगा सकती है... आज़ाद होकर नीलगगन में अपनी ही धुन में मगन होकर उड़ने वाले ये पंक्षी कब कहां बसेरा कर ले ये तो इनकी मर्ज़ी में शामिल होता है... और आजकल इन ख़ूबसूरत तायरों ने अपने पड़ोसी मुल्क भारत को अपना अशियाना बनाया है... इन दिनों ये परदेसी मेहमान घाटी में चहक रहे हैं... इन पंक्षियों की मीठी और सुरीली आवाज़ घाटी की फ़िज़ाओं में मीठे सुर घोल रही है... मस्तमौला मिजाज़ के ये परिंदे घाटी के हालात से बेख़बर बिना किसी ख़ौफ़ के आज़ादी से खुले असमान में उड़ान भर रहे है... दरअसल मध्य एशिया और चाईना में मौसम का मिजाज़ बदलते ही ठंड से बचने के लिए ये तायर घाटी का रूख कर लेते हैं... 15 सितंबर से नवंबर तक ये परदेसी परिंदों का घाटी में आना शुरू हो जाते हैं... और कुछ दिनों यहां अपना बसेरा करने के बाद वापस अपने वतन की तरफ़ रवाना हो जाते है.... ये परदेसी मेहमान हर साल 200,000 की तादात में मध्य एशिया और चाईना से कश्मीर में आते है... जिसमे हर तरह के परिंदे शामिल है... घाटी के नीले अंबर में पंख पसारे हवा से बाते करते इन तायरों की उड़ान का नज़ारा बहुत ही दिलकश होता है... इन परिंदों की आज़ादी देखकर किसी का खुले आसमान में उड़ने का दिल चाहेगा... घाटी में आने वाले सैलानियों को भी ये नज़ारा ख़ूब भा रहा है...

मरज़िया जाफ़र

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