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Wednesday, November 24, 2010

विकास को वोट... जातिवाद को चोट....

चुनावी पिटारे में क़ैद सत्ता के संग्राम से पर्दा उठ गया है... हार जीत का फ़ैसला सरेआम हो गया है... और अब विहार सत्ता की कमान दुबारा संभालने जा रहे हैं पाटलीपुत्र के लायक पुत्र नीतीश कुमार जिसमे विकास के आधार पर बिहार चुनावी समर में अपना परचम लहराया... एक बार फ़िर सत्ता की कमान संभाल कर हुक्मरान-ए-आवाम बन गए नीतीश ने बिहार के राज्यपाल से मिलकर मुख्यामंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और 26 नवंबर को वो दुबारा मुख्यमंत्री पद की शपथ लेकर गठबंधन सरकार बनाएंगे...
इस चुनाव में विकास को वोट और जातिवाद को चोट मिली है... तभी तो जातिवाद की राजनीति करने वाले लालू को ज़ोर का झटका कुछ ज़्यादा ही ज़ोर से लग गया... 15 साल तक बिहार पर राज कर चुके लालू की लालटेन नीतीश की विकास की आंधी में बुझ गई, और उनके पूरे परिवार का इस चुनाव से पत्ता साफ हो गया है... विधानसभा चुनाव में रबड़ी की मिठास भी फीकी पड़ गई... राबड़ी देवी भी अपने निर्वाचन क्षेत्र राघोपुर और सोनपुर से लुढ़क गई... लालू के साले साधु यादव भी गोपालगंज से चुनावी समर में मुंह के बल गिरे... इसके अलावा मैदान में अकेले उतरी कांग्रेस के स्टार प्रचारक राहुल और सोनिया गांधी के पत्ते भी पिट गए... क्योंकि बिहार चुनाव में इस बार सत्तारूढ़ पार्टी ने विकास का मुद्दा उठाया था, जबकि विपक्षी पार्टियों ने सरकार की नाकामी को जनता के बीच उछालने की कोशिश की थी... विपक्ष द्वारा उछाली गई बिहार सरकार की नाकामी उसका सबसे बड़ा हथियार बनी... जिसका नतिजा आपके सामने है कि नीतीश सरकार एक बार फिर सत्ता की कमान संभालने जा रही है... ख़ैर बिहार में एक बार फिर नीतीश की जय और लालू के सर मंडरा रहा है भय...
दल  लीड  जीत  टोटल (243/243)
जेडी(यू)  57 55 112
बीजेपी  42 47 89
आरजेडी 16 6 22
कांग्रेस 3 3 6
एलजेपी 5 1 6
निर्दलीय 4 2 6
अन्य 2 0 2
बीएसपी 0 0 0
लेफ़्ट 0 0 0
ग़ौरतलब है कि बिहार विधानसभा कुल 243 सीटों पर चुनाव हुए... और इस चुनावी मैदान में कुल 1225 उम्मीदवार उतरे जिसमें मुख्य पार्टियों के उम्मीदवार जद (यू) के 141, भाजपा के 102, राजद के 168, लोजपा के 75, कांग्रेस के 243 और बसपा के 239 उम्मीदवार थे... 6 चरणों में होने वाले विधानसभा चुनाव में 52 प्रतिशत से ज्यादा मतदाताओं ने अपने मताधिकार का उपयोग किया...

मरज़िया जाफ़र






Yaddy will be CM of K’taka

A  quotation  in English. “THERE IS NO SMOKE WITHOUT FIRE”. I mean this quotation fit on  Karnatka Chief Minister B.S Yadurappa.  Actually Yadurappa  is facing lots of problems these days.  Which he created himself.  Yadurappa has been accused of Land Scam in Karnataka. BS Yadurappa  helped his  relatives in getting  land. After this blame high commission of BJP asked Yadurappa to meet him. But Mr. Chief Minister deferred the  demand and kept his own provision in front of the party. BS Yadurappa said clearly that he is not at all involved in this scam. Beside this he also demanded that action should be taken against allegate Minster and leader of the party. After this the party head took final decision on this matter. Ultimately  the party stepped  bown  before Yadurappa  will remain in party.


MARZIYA JAFAR

Friday, November 19, 2010

شاہی شادی کا شاہی جلسہ

موقعہ بھی ہے... ماحول بھی
... اور ساتھ ہی ہے شاہی مجاز
... شاہی لباس مے دربان
... گزرے زمانے کے ریاستی پرچم
گھوڑے-بگغیاں
... دھول تاشے
... ریاستی خوبصورت نققشی دار سجاوٹ اور ہاتھوں میں تلوار لئے باراتیوں نے شاہی
خاندان کے یوراج اور اسٹار پولو کھلادی شیوراج سنگھ کی شادی کے جلسے میں شرکت کی جودھپور کے امید بھون پیلکے میں تقریبن ٦٨ بعد ایک بار پھر سے شاہی نظارہ دیکھنے کو ملا دیللی دربار کے بعد پہلی بار اتنی تدال میں شاہی لباس میں شاہی رنگ میں سرابور اور شاہی جلسے میں ایک ساتھ نظر اے معلق کے بادشاہ ،شہنشاہ ،یوراج اور سامنت کیونکی موقع ہے شاہی خاندان کے یوراج کی شادی کا .... شیوراج اتراکھنڈ کے اسکوٹ کی شہزادی گیٹری کے ساتھ شادی پاک رشتے میں بندہ گئے ....اس موقکے پر ریاستی لذّت کا مزہ لوٹنے معلق اور گیر معلق کس نامی گرامی لوگ پہنچے جسمیں فلمی دنیاں کے شہنشاہ امیتابھ بچچاں سمیت کی ہستیوں نے شرکت کی اسکے علاوہ اس شاہی شادی میں معلق کے کی نریش بھی شامل ہوائی...
معلق کی گنی چنی ریاستوں میں سے مروار کی ریاست جودھپور کا یہ شاہی خاندان آج بھی اپنے شاہی رسموں رواج کے لئے مشہور ہے لیکن آزادی کے بعد اس خاندان نے ایسا شاہی جلسہ نہیں کیا 

مرضیہ جعفر

Thursday, November 11, 2010

कहां....कहां.... बसने लगे भगवान


आस्था और विश्वास का कोई मोल नहीं होता... कहीं भी और किसी भी रूप में भगवान के दर्शन किए जा सकते हैं... ब-र्शत ऊपर वाले में विश्वास और आस्था अटूट हो... लेकिन क्या कभी सोचा है कि भगवान को हज़ारों रूप में बाट चुके इंसान कितनी देर उन्हें दिल में बसाते है... बड़ी शान से अपने घर में स्थापित करते हैं... और विध्वत पूजा अर्चना के बाद उनका विर्जन कर देते है... जितनी शान के साथ भगवान की मूर्तियां घर में लाई जातीं हैं... उतनी ही शान के साथ उनकी भव्य विदाई भी कि जाती है... लेकिन विर्सजन के बाद देवी-देवता की इन प्रतिमाओं के साथ क्या होता है... क्या किसी ने कभी इस बारे में सोचा है, कि जिन्हें घर में शान से लाए, आदर सत्कार दिया ... वही प्रतिमाएं विसर्जन के बाद लावारिस नज़र आती है... जिन्हे हाथों से कभी पूजा उसे ही बाद में क़दमों तले रौंद दिया... उस वक्ता सारा एहसास कहा चला जाता है... जब देवी देवताओं के पोस्टर उनकी मूर्तियां नदी नालों तलाब के इर्द-गिर्द नज़र आते है... बात यहीं ख़त्म नहीं हो जाती... अफ़सोस तो उस वक्त होता है जब उन पवित्र चीज़ो से वहीं इंसान किनारा कसते नज़र आते है जो दिनों रात उनकी पूजा अर्चना करते है... कहने का मतलब ये नहीं की भगवान की बेज़्ज़ती की जा रही हैं...


लेकिन विर्जन के बाद की लापरवाही का नतिजा आप के सामने है... कि किस तरह से कण-कण में बसने वाली शक्ती को एक आकार में ढ़ाल कर उसके साथ कैसा बर्ताव किया जाता है... सवाल ये भी उठता है कि आख़िर पूजा के बाद विर्जन की रस्म कैसे और कहा जा कर अदा कि जाए... भई इंसान तो नदी पर ही जाएगा... और वैसे भी मिट्टी की चीज़ मिट्टी में ही समा जाती है... य़ा उसे साफ़ सुरक्षित और पवित्र पानी में बहाया जाता है... लेकिन बहाने के बाद का नज़ारा आपके सामने है... इससे निपटने के लिए सबको एक जुट होकर काम करना पड़ेगा कि जहां की चीज़ हो उसे वहां भली भांति पहुंचा दिया जाए... ना कि आधे-अधूरे रास्तों पर छोड़कर उसे लोगों के क़दमों में रौदने के लिए छोड़ दिया जाए... क्योंकि हम अपनी आस्था और विश्वास के बल बूते ही उस शक्ति को एक आकार देते है... उसकी पूजा करते है... तो फ़िर मिट्टी से बनाए एक पवित्र आकार को कदमों की धूल कैसे बना सकते है...   

मरज़िया जाफ़र