दरअसल अंडे आकार का चेहरा, कार्टुन जैसा चरित्र, अजीबोगरीब आवाज़ और करोड़ों प्रशंसक इसे ज़ूज़ू कहते है...जिसने देश विदेश में धूम मचा दी है...
इंडियन प्रीमियर लीग का प्रयोजक बनने के बाद वोडाफोन ने तय किया कि इस सीज़न का भरपूर भूनाना है...वोडाफोन ने अपनी एड एजेंसी O&M को निर्देश दिया कि कुल 29 विज्ञापन फिल्में बनानी है... जो पूरे आईपीएल सीज़न के दौरान दिखाई जाएंगी... ये सभी विज्ञापन अलग-अलग होंगे... लेकिन इनकी थीम एक जैसी ही होगी, और इन्हें इस तरह से बनाया जाए कि सभी विज्ञापन एक दूसरे जुड़े हुए लगें... O&M के लिए ये मुश्किल था... उन्हें इस तरह के विज्ञापन बनाने थे जो 30 सेकंड के हो और इतने कम वक़्त में संदेश आसानी से दें दे. इसके अलावा विज्ञापन ऐसे भी होने चाहिए जो बच्चों को ही नहीं लेकर बड़ों को भी पसंद आए... ज़ूज़ू दूसरे ग्रहों जैसे दिखते हैं....और इनके भी मजेदार है... ज़ूज़ू.... लोग सोचते है कि जूजू एनिमेटेड हैं... लेकिन ये एनिमेटेड नहीं बल्कि इसमें इंसानों ने काम किया है... लेकिन उनका फिल्मांकन ऐसा किया गाया है जिससे वो एनिमेटेड लगें... साउथ अफ्रीका के केपटाउन में लम्बे समय की शूटिंग के बाद... 29 विज्ञापन फिल्में बनाई गई... ज़ूज़ू वास्तविक लोग हैं जिन्होनें विशेष रूप से तैयार कपडे पहने हैं. उनके कपड़ों को दो भाग में बाटा गया हैं... सिर के नीचे का हिस्सा स्पेशल कपडों से बना है और साथ में फॉम डाला गया है... इस हावभाव दर्शाते समय सिलवटें नहीं पडती. पेट के भाग में थोड़ा अधिक फोम डालकर उसे मोटा दिखाया गया है... सिर को एक विशेष पदार्थ पर्सपेक्स से बनाया गया है... जो काफी मजबूत होता है... आपको ये सुनकर हैरानी होगी लेकिन ये सच है कि इस विज्ञापन में सभी जूजू महिलाएँ हैं... विज्ञापन फिल्मों मे भले ही पुरूष और महिला दोनों प्रकार के जूजू दिखते हों लेकिन ये सभी महिला कलाकार थिएटर आर्टिस्ट हैं... जिन्होनें ज़ूज़ू का मुश्किल पात्र निभाया है... जूजू यकीनन मुश्किल पात्र हैं और इसकी कई वजह हैं...पहली तो ये है कि जूजू का मस्तक इतना बड़ा है कि उसे सम्भालना ही दिक्कत भरा काम है... दूसरी दिक्कत ये है कि जूजू के मस्तक में से देखने का कोई ज़रिया नहीं है... टीवी पर चाहे जूजू की दो गोल-गोल आँखें दिखती हों... लेकिन उसे ऊपर से चिपकाया गया है... मस्तक के अंदर मौजूद महिला कलाकारों को कुछ नहीं दिखाई देता...ये अनुमान के आधार पर ही अभिनय करना पडता है... एक दिक्कत ये भी है कि जूजू के मस्तक के अंदर बहुत कम हवा होती है और उसके अंदर मौजूद कलाकार को हवा नहीं मिलती.... इसलिए कुछ मिनिटों बाद ही उसे जूजू का मस्तक उतारना पड़ता है... जिससे कि वह सांस ले सके.... ये सभी दिक्कतो के अलावा एक दिक्कत और भी है कि पूरे सीन को एनिमेशन फिल्म जैसा दिखाया गया है... इसके लिए कलाकार के ज़रिए इस्तेमाल की जाने वाली चीजें जैसे की कार, कुर्सी टेबल, दरवाजे,कार्टून फिल्मों जैसे बनाए गए... बैकग्राउड का रंग ग्रे रखा गया ताकी पूरा ध्यान सफेद रंग के जूजू पर रहे.... इसके बाद पूरी फिल्म को कम फ्रेमरेट वाले कैमरों से फिल्माया गया और आख़िर में जब फ्रेमरेट सामान्य कर दी गई जिसकी वजह से जूजू भागते से नजर आने लगे...
जूजू की आवाज भी मैकेनिकल तरीके से सम्पादित कर इस तरह से बनाई गई जिससे उसके बोल मतलब समझ में ना आए लेकिन मतलब पता चल जाए.. लेकिन ये कभी हँसते हैं, कभी गुस्सा करते हैं, कभी दुखी होते हैं...वो यूं हुआ की जूजू के मुँह के हावभाव से संबंधित टुकड़े हर दृश्य में लगाए जाते हैं...जैसे सीन में जूजू हँसता और दूसरे ही सीन में चौंक जाता है... इसके लिए पहले सीन में उसके मूँह पर हास्य के भाव वाला कटआउट लगाया जाता है और दूसरे सीन को फिल्माने से पहले वह कटआउट निकाल कर चौंकने के भाव वाला कटआउट लगा दिया जाता है... जूजू की फिल्में बनाने के पीछे काफी मेहनत, समय और पैसा लगा है. और आज जूजू वोडाफोन जैसा ही ब्रांड बन गए हैं. ऐसा बहुत कम होता है...
No comments:
Post a Comment